लेखनी कहानी दुश्मन दोस्त
धीरे धीरे कबीर और स्नेहा एक दूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने लगे। धीरे धीरे उन दोनों का रिश्ता दोस्ती की सरहद पार कर मोहब्बत में बदल गया। लेकिन शायद इस प्यार पर किसी की जलन भरी नज़र पड़ चुकी थी।
दोस्ती और प्यार रेल की दो पटरियों की तरह होते हैं जो अगर किसी इंसान के साथ साथ चलते रहे तो सब सही रहेगा। लेकिन अगर इनमें से एक भी ज़रा सा अपनी जगह सा हिला तो तबाही होनी तय है। ऐसा ही कुछ हुआ कबीर और स्नेहा के रिश्ते में। दोनों की बढ़ती नजदीकियों की वजह से कोई और खुद को किनारे पर समझने लग गया और इस से पहले कि दोनों एक दूसरे से अपने प्यार का इजहार करते। उस शख्स ने इन दोनों के बीच इतनी गलतफहमियां पैदा कर दी कि तीन महीने का रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच गया।
"ऐसा कैसे हो सकता है यार, मुझे तो लगता था कि स्नेहा भी मुझसे प्यार करती है। देख अगर यह कोई मज़ाक है तो बहुत बुरा मज़ाक है।" कबीर ने उदास हो कर कहा।
"यकीन करना है तो कर वरना तु उससे खुद ही पुछ लेना कि कल शाम को वो कहां थी। मैंने उसे खुद किसी और लड़के की बाज़ू में बाज़ू डाल कर होस्टल से बाहर जाते हुए देखा था। आज रात भी दोनों डिनर करने कहीं बाहर जाने वाले हैं।" सामने वाले शख्स ने जब यह बात कही तो कबीर का दिल बैठ गया।
"कबीर एक नंबर का कैसोनोवा है, मुझे यकीन नहीं होता स्नेहा कि तुम जैसी समझदार लड़की उसके झांसे में कैसे फंस गई। आज जब वो तुम्हें मिलने के लिए बुलाए तो साफ मना कर देना। उसकी असली सीरत खुद ब खुद सामने आ जाएगी।" स्नेहा की दोस्त माया ने उसे समझाते हुए कहा तो स्नेहा की आंखें नम हो गईं और वो चुपचाप मायूसी से बिस्तर पर लेट गई। माया भी होस्टल से वापस अपने घर चली गई। घर पहुंचकर जैसे ही उसने दरवाजा खोला तो सामने सोफे पर पहले से ही कोई बैठा हुआ था।
"तुम यहां क्यूं आए हो? मैंने तुम्हें मना किया था ना कि जब तक हमारी योजना पूरी नहीं हो जाती। हम एक दूसरे के सामने नहीं आएंगे। उस कबीर ने मुझे अनदेखा कर उस स्नेहा को चुना था लेकिन अब मेरे रहते स्नेहा कभी उसे पास भी नहीं आने देगी। चिंगारी तो मैंने लगा दी। बस भड़कने की देर है। कुछ दिन का इंतजार और फिर यह चिंगारी उन दोनों के रिश्ते को जला कर राख कर देगी। वैसे तुम भी कुछ कम नहीं हो राजू। कितनी आसानी से तुमने उस कबीर के मन में स्नेहा के किसी और के साथ रिश्ते वाली बात बैठा दी।" होंठों पर शातिर मुस्कान लिए माया ने कहा तो राजू के होंठों पर भी मुस्कान फैल गई।
"उस कल की आई लड़की की वजह से कबीर धीरे धीरे मुझसे दूर होने लगा था। हमारी पन्द्रह साल की दोस्ती पर उसका दो महीने वाला प्यार भारी पड़ने लगा था और यही बात मुझे अच्छी नहीं लगी। मैं उस स्नेहा की ख्वाहिश कभी पूरी नहीं होने दूंगा। चाहे उसके लिए मुझे कबीर से दुश्मन ही क्यूं ना निभानी पडे।" आंखों में अंगार भरते हुए राजू ने कहा और उठ कर बाहर निकल गया। उसके बाहर जाते ही
"तुम्हें क्या लगा राजू कि यह सब मैंने तुम्हारे कहने पर किया है। यह तुम्हारी गलतफहमी है। यह तो मैं बहुत पहले ही कर सकती थी लेकिन मौका नहीं मिला। तुमसे हाथ मिलाने के पीछे का मकसद सिर्फ कबीर को हासिल करना था। स्नेहा का पत्ता कटते ही कबीर और मुझे एक होने से कोई नहीं रोक सकता। तु बस देखता जा।" माया ने शातिर हंसी हंसते हुए कहा। लेकिन वो अनजान थी कि यह सब बातें राजू बाहर खड़े हो कर सुन रहा था। जिसे पहले ही माया पर शक था।
#दैनिक प्रतियोगिता
Rajeev kumar jha
31-Jan-2023 12:46 PM
Nice
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Vedshree
30-Jan-2023 01:58 PM
Behtarin rachana 👌
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Mohammed urooj khan
30-Jan-2023 11:42 AM
👌👌👌👌
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